+ दिग्व्रती के महाव्रतपना -
अवधे-र्बहिरणुपाप-प्रतिविरतेर्दिग्व्रतानि धारयतां
पञ्च महाव्रतपरिणति-मणुव्रतानि प्रपद्यन्ते ॥70॥
अन्वयार्थ : [दिग्व्रतानि धारयताम्] दिग्व्रतों के धारक [अणुव्रतानि अबधेःबहिः] अणुव्रत की मर्यादा के बाहर [अणुपाप प्रति विरतेः] सूक्ष्म पापो की भी निवृति हो जाने से [पञ्च महाव्रत परिणति] पञ्च-महाव्रत रूप परिणति को [प्रपद्यन्ते] प्राप्त होते हैं ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

एवं दिग्विरतिव्रतं धारयतां मर्यादात: परत: किं भवतीत्याह --
अणुव्रतानि प्रपद्यन्ते । काम् ? पञ्चमहाव्रतपरिणतिम् । केषाम् ? धारयताम् । कानि ? दिग्व्रतानि । कुतस्तत्परिणतिं प्रपद्यन्ते ? अणुपापप्रतिविरते: सूक्ष्ममपि पापं प्रतिविरते: व्यावृत्ते: । क्व ? बहि: । कस्मात् ? अवधे: कृतमर्यादाया: ॥
आदिमति :

जो मनुष्य दसों दिशाओं में आने-जाने की मर्यादा करके मर्यादा के बाहर नहीं आता-जाता, इसलिए स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही प्रकार के पाप छूट जाते हैं । अतएव मर्यादा के बाहर अणुव्रत भी महाव्रतपने को प्राप्त हो जाते हैं ।