प्रभाचन्द्राचार्य :
एवं दिग्विरतिव्रतं धारयतां मर्यादात: परत: किं भवतीत्याह -- अणुव्रतानि प्रपद्यन्ते । काम् ? पञ्चमहाव्रतपरिणतिम् । केषाम् ? धारयताम् । कानि ? दिग्व्रतानि । कुतस्तत्परिणतिं प्रपद्यन्ते ? अणुपापप्रतिविरते: सूक्ष्ममपि पापं प्रतिविरते: व्यावृत्ते: । क्व ? बहि: । कस्मात् ? अवधे: कृतमर्यादाया: ॥ |
आदिमति :
जो मनुष्य दसों दिशाओं में आने-जाने की मर्यादा करके मर्यादा के बाहर नहीं आता-जाता, इसलिए स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही प्रकार के पाप छूट जाते हैं । अतएव मर्यादा के बाहर अणुव्रत भी महाव्रतपने को प्राप्त हो जाते हैं । |