+ भोग-उपभोग के लक्षण -
भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्यः
उपभोगोऽशनवसनप्रभृतिः पञ्चेन्द्रियो विषयः ॥83॥
अन्वयार्थ : [अशन] भोजन [वसन] वस्त्र [प्रभृतिः] आदिक [पञ्चेन्द्रिय: विषय:] पाँचों इन्द्रिय सम्बन्धी जो विषय [भुक्त्वा] भोगकर के [परिहातव्य:] छोड़ दी जाती है वह [भोग:] भोग है [च] और [भुक्त्वा] भोगकर [पुन:] वापस [भोक्तव्य:] भोगने में आती है वह [उपभोग:] उपभोग है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

अथ को भोग: कश्चोपभोगो यत्परिमाणं क्रियते इत्याशङ्क्याह --
पञ्चेन्द्रियाणामयं पाञ्चेन्द्रियो विषय: । भुक्त्वा परिहातव्य स्त्याज्य: स 'भोगो' ऽशनपुष्पगन्धविलेपनप्रभृति: । य: पूर्वं भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्य: स 'उपभोगो' वसनाभरणप्रभृति: वसनं वस्त्रम् ॥
आदिमति :

जो पदार्थ एक बार भोगकर छोड़ दिये जाते हैं, वे पुन: काम में नहीं आते, ऐसी भोजन, पुष्प, गन्ध और विलेपन आदि वस्तुएँ भोग कहलाती हैं तथा जो पहले भोगी हुई वस्तु बार-बार भोगने में आवे, वह उपभोग है । जैसे -- वस्त्र, आभूषण आदि। इन भोग और उपभोग की वस्तुओं का नियम करना भोगोपभोग परिमाणव्रत कहलाता है ।