+ प्रातिदिन सामायिक का उपदेश -
सामयिकं प्रतिदिवसं यथावदप्यनलसेन चेतव्यम्
व्रतपञ्चकपरिपूरणकारणमवधानयुक्तेन ॥101॥
अन्वयार्थ : [व्रतपञ्चक] हिंसा त्याग आदि पाँच व्रतों की [परिपूरण] पूर्ति का [कारणम्] कारण [सामायिकं] सामायिक [अनलसेन] आलस्य से रहित और [अवधानयुक्तेन] चित्त की एकाग्रता से युक्त पुरुष के द्वारा [प्रतिदिवसं] प्रतिदिन [यथावत्] शास्त्रोक्त विधि के अनुसार [चेतव्यम्] बढ़ाया जाना चाहिए ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

इत्थम्भूतं तत्किं कदाचित्परिचेतव्यमन्यथा वेत्यत्राह --
चेतव्यं वृद्धिं नेतव्यम् । किं ? सामायिकम् । कदा ? प्रतिदिवसमपि न पुन: कदाचित् पर्वदिवस एव । कथम् ? यथावदपि प्रतिपादितस्वरूपानतिक्रमेणैव । कथम्भूतेन ? अनलसेनाऽऽलस्यरहितेन उद्यतेनेत्यर्थ: । तथाऽवधानयुक्तेनैकाग्रचेतसा । कुतस्तदित्थं परिचेतव्यम् ? व्रतपञ्चकपरिपूरणकारणं यत: व्रतानां हिंसाविरत्यादीनां पञ्चकं तस्य परिपूरणत्वं महाव्रतरूपत्वं तस्य कारणम् । यथोक्तसामायिकानुष्ठानकाले हि अणुव्रतान्यपि महाव्रतत्वं प्रतिपद्यन्तेऽतस्तत्कारणम् ॥
आदिमति :

यहाँ पर बतला रहे हैं कि कोई यह न समझ ले कि उपवास अथवा एकाशन के दिन ही सामायिक करनी चाहिए, अन्य दिनों में नहीं । इसी का निराकरण करते हुए कहते हैं कि शास्त्रोक्त विधि का अतिक्रमण नहीं करते हुए प्रतिदिन सामायिक करनी चाहिए । सामायिक करने वाला पुरुष आलस्य रहित तथा चित्त की एकाग्रता से युक्त होना चाहिए । क्योंकि सामायिक में हिंसादि पंच पापों की निवृत्ति हो जाती है, इसलिए पाँचों व्रतों की परिपूर्णता स्वरूप सामायिक के काल में अणुव्रत भी महाव्रतरूपता के कारण हैं ।