+ सामायिक के समय मुनितुल्यता -
सामयिके सारम्भाः परिग्रहा नैव सन्ति सर्वेऽपि
चेलोपसृष्टमुनिरिव गृही तदा याति यतिभावम् ॥102॥
अन्वयार्थ : [सामयिके] सामायिक के काल में [सारम्भाः] आरम्भ सहित [सर्वेऽपि] सभी (अन्तरंग-बहिरंग) [परिग्रहा] परिग्रह [नैव] नहीं [सन्ति] होते हैं, इसलिए [तदा] उस समय [गृही] गृहस्थ [चेलोपसृष्ट] उपसर्ग के कारण वस्त्र से वेष्टित [मुनिरिव] मुनि के समान [यतिभावम्] मुनिपने को [आयाति] प्राप्त होता है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

एतदेव समर्थयमान: प्राह --
सामयिके सामायिकावस्थायाम् । नैव सन्ति न विद्यन्ते । के ? परिग्रहा: सङ्गा: । कथम्भूता: ? सारम्भा: कृष्याद्यारम्भसहिता: । कति ? सर्वेऽपि बाह्याभ्यन्तराश्चेतनेतरादिरूपा वा । यत एवं ततो याति प्रतिपद्यते । कम् ? यतिभावं यतित्वम् । कोऽसौ ? गृही श्रावक: । कदा ? सामायिकावस्थायाम् । क इव ? चेलोपसृष्टमुनिरिव चेलेन वस्त्रेण उपसृष्ट: उपसर्गवशाद्वेष्टित: स चासौ मुनिश्च स इव तद्वत् ॥
आदिमति :

जिस समय गृहस्थ सामायिक करता है, उस काल में उसके खेती आदि के आरम्भ से सहित सभी बहिरंग-अन्तरंग तथा चेतन-अचेतन परिग्रह नहीं होते हैं । इसलिए वह गृहस्थ सामायिक अवस्था में उपसर्ग से वस्त्राच्छादित मुनि के समान मुनिपने को प्राप्त होता है ।