+ उपवास के दिन वर्जित कार्य -
पञ्चानां पापानामलङ्क्रियारम्भगन्धपुष्पाणाम्
स्नानाञ्जननस्यानामुपवासे परिहृतिं कुर्य्यात् ॥107॥
अन्वयार्थ : [उपवासे] उपवास के दिन [पञ्चानां] पाँच [पापानाम्] पापों का तथा [अलङ्क्रिया] अलंकार धारण करना, [आरम्भ] खेती आदि का आरम्भ करना, [गन्धपुष्पाणाम्] चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप करना, पुष्पमालाएँ धारण करना या पुष्पों को सूंघना, [स्नान] स्नान करना, [अञ्जन] काजल / सुरमा आदि लगाना तथा [नस्या] नाक से नस्य आदि का सूंघना इन सबका [परिहृतिं] परित्याग [कुर्य्यात्] करना चाहिए ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

उपवासदिने चोपोषितेन किं कर्तव्यमित्याह --
उपवासदिने परिहृतिं परित्यागं कुर्यात् । केषाम् ? पञ्चानां हिंसादीनाम् । तथा अलङ्क्रियारम्भगन्धपुष्पाणाम् अलङ्क्रियामण्डनं आरम्भो वाणिज्यादिव्यापार: गन्धपुष्पाणामित्युपलक्षणं रागहेतूनां गीतनृत्यादीनाम् । तथा स्नानाञ्जननस्यानां स्नानं च अञ्जनं च नस्यञ्च तेषाम् ॥
आदिमति :

उपवास करने वाले व्यक्ति को उपवास के दिन हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों का त्याग करना चाहिए । तथा शरीर-सज्जा, वाणिज्यादि व्यापार, गन्धपुष्प आदि के प्रयोग का और स्नान, अञ्जन, नस्यादि के सेवन का त्याग करना चाहिए । यह सब उपलक्षण हैं, अत: इसमें गीत, नृत्यादि राग के सभी कारणों का त्याग भी आ जाता है ।