+ वैयावृत्य में अर्हंत पूजा -
देवाधिदेवचरणे परिचरणं सर्वदुःखनिर्हरणम्
कामदुहि कामदाहिनि परिचिनुयादादृतो नित्यम् ॥119॥
अन्वयार्थ : [आदृत:] श्रावक को आदर से युक्त होकर [नित्यम्] प्रतिदिन [देवाधिदेवचरणे] अरहन्त भगवान् के चरणों में [कामदुहि] मनोरथों को पूर्ण करने वाली और [कामदाहिनि] काम को भस्म करने वाली [सर्वदुःखनिर्हरणम्] समस्त दु:खों को दूर करने वाली [परिचरणं] पूजा [परिचिनुयात्] अवश्य करनी चाहिए ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

यथा वैयावृत्यं विदधता चतुर्विधं दानं दातव्यं तथा पूजादिविधानमपि कर्तव्यमित्याह --
आदृत: आदरयुक्त: नित्यं परिचिनुयात् पुष्टं कुर्यात् । किम् ? परिचरणं पूजाम् । किंविशिष्टम् ? सर्वदु:खनिर्हरणं नि:शेषदु:खविनाशकम् । क्व ? देवाधिदेवचरणे देवानामिन्द्रादीनामधिको वन्द्यो देवो देवाधिदेवस्तस्य चरण: पाद: तस्मिन् । कथम्भूते ? कामदुहि वाञ्छितप्रदे । तथा कामदाहिनि कामविध्वंसके ॥
आदिमति :

इन्द्रादिक देवों के द्वारा वन्दनीय अरहन्त भगवान् देवाधिदेव कहलाते हैं । उनके चरणकमल वाञ्छित फल देने वाले हैं और कामदेव को विध्वंस करने वाले हैं । इसलिए गृहस्थों को चाहिए कि वे आदरपूर्वक प्रतिदिन अरहन्तदेव की पूजा करें, क्योंकि उनकी पूजा समस्त दु:खों का नाश करने वाली है ।