
प्रभाचन्द्राचार्य :
इदानीमुक्तप्रकारस्य वैयावृत्यस्यातीचाराना -- पञ्चैते आर्यापूर्वार्धकथिता । वैयावृत्तस्य व्यतिक्रमा: कथ्यन्ते । तथाहि । हरितपिधाननिधाने हरितेन पद्मपत्रादिना पिधानं झम्पनमाहारस्य । तथा हरिते तस्मिन् निधानं स्थापनम् । तस्य अनादर: प्रयच्छतोऽप्यादराभाव: । अस्मरणमाहारादिदानमेतस्यां वेलामेवंविधपात्राय दातव्यमिति आहार्यवस्तुष्विदं दत्तमदत्तमिति वा स्मृतेरभाव: । मत्सरत्वमन्यदातृदानगुणासहिष्णुत्वमिति ॥ इति प्रभाचन्द्रविरचितायां समन्तभद्रस्वामिविरचितोपासकाध्ययनटीकायां चतुर्थ: परिच्छेद: । |
आदिमति :
वैयावृत्य शिक्षाव्रत के पाँच अतिचार कहते हैं, तद्यथा -- हरे कमल पत्र आदि से आहार को ढकना 'हरितपिधान' नाम का अतिचार है । हरे कमल पत्र आदि पर आहार को रखना 'हरितनिधान' नाम का अतिचार है। देते हुए भी आदर भाव नहीं होना 'अनादर' नाम का अतिचार है । आहारदान इस समय ऐसे पात्र के लिये देना चाहिए अथवा आहार में यह वस्तु दी है कि नहीं दी है, इस प्रकार की स्मृति का अभाव होना 'अस्मरण' नाम का अतिचार है । अन्य दाता के दान तथा गुणों को सहन नहीं करना 'मात्सर्य' कहलाता है । इस प्रकार वैयावृत्य के ये पाँच अतिचार कहे गये हैं । इस प्रकार समन्तभद्रस्वामी द्वारा रचित उपासकाध्ययन की प्रभाचन्द्रविरचित टीका में चतुर्थ परिच्छेद पूर्ण हुआ । |