+ विकार का अभाव -
काले कल्पशतेऽपि च, गते शिवानां न विक्रिया लक्ष्या
उत्पातोऽपि यदि स्यात्, त्रिलोकसम्भ्रान्तिकरणपटु: ॥133॥
अन्वयार्थ : [कल्पशते काले] सैंकड़ो कल्पकालों के काल के [गते] बीतने पर [अपि] भी [यदि] अगर [त्रिलोकसम्‍भ्रान्ति करणपटुः] तीनों लोकों में खलबली पैदा करने वाला [उत्पात:] उपद्रव [अपि] भी [स्यात्] हो [तथापि] तो भी [पि च शिवानां] सिद्धों में [विक्रिया] विकार [न लक्ष्या] दृष्टिगोचर नहीं होता ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

अनन्ते काले गच्छति कदाचित् सिद्धानां विद्याद्यन्यथाभावो भविष्यत्यत: कथं निरतिशया निरवधयश्चेत्याशङ्कायामाह -
न लक्ष्या न प्रमाणपरिच्छेद्या । कासौ ? विक्रिया विकार: स्वरूपान्यथाभाव: । केषाम् ? शिवानां सिद्धानाम् । कदा ? कल्पशतेऽपि गते काले । तर्हि उत्पातवशात्तेषां विक्रिया स्यादित्याह- उत्पातोऽपि यदि स्यात् तथापि न तेषां विक्रिया लक्ष्या । कथाम्भूत: उत्पात: ? त्रिलोकसम्भ्रान्तिकरणपटु: त्रिलोकस्य सम्भ्रान्तिरावत्र्तस्तत्करणे पटु: समर्थ: ॥
आदिमति :

बीस कोड़ाकोड़ी सागर का एक कल्पकाल होता है । ऐसे सैंकड़ों कल्पकालों के बीत जाने पर भी सिद्धजीवों में कोई विकार लक्षित नहीं होता । तथा तीनों लोकों में क्षोभ उत्पन्न करने में समर्थ ऐसा भी उत्पात यदि हो जावे, तो भी सिद्धों में कोई विकार नहीं होता, इस प्रकार की सिद्धजीवों की अवस्था होती है ।