
प्रभाचन्द्राचार्य :
साम्प्रतंप्रोषधोपवासगुणंश्रावकस्यप्रतिपादयन्नाह- प्रोषधेनानशनमुपवासोयस्यासौप्रोषधानगशन: । किमनियमेनापिय: प्रोषधोपकारीसोऽपिप्रोषधानशनव्रतसम्पन्नइत्याह- प्रोषधनियमविधायीप्रोषधस्यनियमोऽवश्यंभावस्तंविदधातीत्येवंशील: । क्वतन्नियमविधायी ? पर्वदिनेषुचतुष्र्वपिद्वयोश्चतुर्दश्योद्र्वयोश्चाष्टम्योरिति । किंचातुर्मासस्यादौतद्विधायीत्याह - मासेमासे । किंकृत्वा ? स्वशक्तिमनिगुह्यतद्विधानेआत्मसामथ्र्यमप्रच्छाद्य । किंविशिष्ट: ? प्रणिधिपर: एकाग्रतांगत: शुभध्यानरतइत्यर्थ: ॥ |
आदिमति :
'प्रोषधेनानशनमुपवासो यस्यासौ प्रोषधानशन:' इस विग्रह के अनुसार धारण-पारणा के दिन एकाशन और पर्व के दिन जो उपवास करता है, वह प्रोषधनियमविधायी कहलाता है । जो बिना नियम के प्रोषध-उपवास करता है, वह भी प्रोषधव्रत सम्पन्न कहलाता है । इसके उत्तरस्वरूप कहते हैं कि प्रोषधोपवास के नियम का परिपालन करने वाला तो अवश्य ही नियमपूर्वक पर्व के दिनों में अर्थात् दो अष्टमी और दो चतुर्दशी के दिनों में प्रोषधोपवास व्रत का परिपालन करता है । तो क्या चातुर्मास के प्रारम्भ से इस व्रत का पालन किया जाता है? उत्तर देते हैं कि प्रत्येक माह की दो अष्टमी और दो चतुर्दशी इस प्रकार पर्व के चारों दिनों में अपनी शक्ति को न छिपाकर उपवास करना होता है । इस प्रतिमा का धारक एकाग्रता से शुभ ध्यान में तत्पर रहता है । |