+ सचित्त त्याग प्रतिमा -
मूलफलशाकशाखा - करीरकन्दप्रसूनबीजानि
नामानि योऽत्ति सोऽयं, सचित्तविरतो दयामूर्ति: ॥141॥
अन्वयार्थ : [य:] जो [दयामूर्ति:] दया की मूर्ति होता हुआ [आमानि] अपक्व / कच्चे मूल, फल, शाक, [शाक] डाली, [शाखा] कोंपलों, करीर, कन्द, [प्रसून] फूल और बीज को [न अत्ति] नहीं खाता है, वह यह [सचित्तविरतो] सचित्त त्यागी है ।

  प्रभाचन्द्राचार्य    आदिमति    सदासुखदास 

प्रभाचन्द्राचार्य :

इदानींश्रावकस्यसचित्तविरतिस्वरूपंप्ररूपयन्नाह-
सोऽयंश्रावक: सचित्तविरतिगुणसम्पन्न: । योनात्तिनभक्षयति । कानीत्याह- मूलेत्यादि- मूलंचफलंचशाकश्चशाखाश्चकोपला: करीराश्चवंशकिरणा: कन्दाश्चप्रसूनानिचपुष्पाणिबीजानिचतान्येतानिआमानिअपक्वानियोनात्ति । कथम्भूत: सन् ? दयामूर्ति: दयास्वरूप: सकरुणचित्तइत्यर्थ: ॥

आदिमति :

गाजर, मूली आदि मूल कहलाते हैं । आम, अमरूद आदि फल हैं, पत्ती वाले शाक भाजी कहलाते हैं । वृक्ष की नई कोंपल शाखा कहलाती है । बाँस के अंकुर को करीर कहते हैं, जमीन में रहने वाले अंगीठा आदि को कन्द कहते हैं । गोभी आदि के फूल को प्रसून कहते हैं और गेहूँ आदि को बीज कहा जाता है । ये सब अपक्व अवस्था में सचित्त सजीव रहते हैं, अत: दयामूर्ति-दया का धारक श्रावक इन्हें नहीं खाता है ।