+ व्यवहार आराधना - लक्षण और भेद -
ववहारेण य सारो भणिओ आराहणाचउक्कस्स ।
दंसणणाणचरित्तं तवो य जिणभासियं णूणं ॥3॥
व्यवहारेण च सारो भणितं आराधनाचतुष्कस्य ।
दर्शनज्ञानचारित्रं तपश्च जिनभाषितं नूनम् ॥३॥
मुनियों ने व्यवहार से, कहा साधना सार ।
दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप, जिनभाषित सुखकार ॥३॥
अन्वयार्थ : [णूणं] निश्चय से [जिणभासियं] जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा हुआ [दंसणणाणचरित्तं तवो य] दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप [ववहारेण] व्यवहारनय से [आराहणाचउक्कस्स] चार आराधनाओं का [सारो भणिओ] सार कहा गया है ।