+ सम्यग्दर्शन आराधना -
भावाणं सद्दहणं कीरइ जं सुत्तउत्तजुत्तीहिं ।
आराहणा हु भणिया सम्मत्ते सा मुणिंदेहिं ॥4॥
भावानां श्रद्धानं क्रियते यत्सूत्रोक्तयुक्तिभिः ।
आराधना हि भणिता सम्यक्त्वे सा मुनीन्द्रैः ॥४॥
आगमोक्त सद्युक्तियुत, भावों का श्रद्धान ।
उसे दर्शनाराधना, कहते जिन भगवान ॥४॥
अन्वयार्थ : [सुत्तउत्तजुत्तीहिं] आगम में कही हुई युक्तियों के द्वारा [भावाणं] जीवादि पदार्थों का [जं] जो [सद्दहणं] श्रद्धान [कीरइ] किया जाता है [सा] वह [मुणिंदेहिं] मुनिराजों के द्वारा [हु] निश्चय से [सम्मत्ते] सम्यग्दर्शन विषयक [आराहणा] आराधना [भणिया] कही गई है ॥४॥