
सुत्तत्थभावणा वा तेसिं भावाणमहिगमो जो वा ।
णाणस्स हवदि एसा उत्ता आराहणा सुत्ते ॥5॥
सूत्रार्थभावना वा तेषां भावानामधिगमो यो वा ।
ज्ञानस्य भवत्येषा उक्ता आराधना सूत्रे ॥५॥
सूत्र, अर्थ की भावना, तत्त्वों का शुभज्ञान ।
सम्यग्ज्ञानाराधना, है सूत्रोक्त प्रमाण ॥५॥
अन्वयार्थ : [सुत्तत्थभावणा] आगम के अर्थ की भावना [वा] अथवा [तेसिं भावाणं] उन जीवादि पदार्थों का जो [अहिगमो] सम्यग्ज्ञान है [एसा] यह [सुत्त] परमागम में [णाणस्य] ज्ञान की [आराहणा] आराधना [उत्ता हवदि] कही गई है ।