+ चारित्र आराधना -
तेरहविहस्स चरणं चारित्तस्सेह भावसुद्धीए ।
दुविहअसंजमचाओ चारित्ताराहणा एसा ॥6॥
त्रयोदशविधस्य चरणं चारित्रस्येह भावशुद्धया ।
द्विविधासंयमत्यागश्चारित्राराधना एषा ॥६॥
भाव युक्त पालें सदा, तेरह विध चारित्र ।
द्विविध असंयम त्याग से, है चारित्र पवित्र ॥६॥
अन्वयार्थ : [भावसुद्धीए] भावों की शुद्धि पूर्वक [इह] इस आराधना में [तेरह विहस्स] तेरह प्रकार के [चारित्तस्स] चारित्र का [चरणं] आचरण करना - पालन करना और [दुविहअसंजमचाओ] दो प्रकार के असंयम का त्याग करना [एसा] यह [चारित्ताराहणा] चारित्राराधना [हवदि] है ॥६॥