
तम्हा दंसणणाणं चारित्तं तह तवो य सो अप्पा ।
चइऊण रायदोसे आराहउ सुद्धमप्पाणं ॥10॥
तस्माद्दर्शनं ज्ञानं चारित्रं तथा तपश्च स आत्मा ।
त्यक्त्वा रागद्वेषौ आराधयतु शुद्धमात्मानम् ॥१०॥
दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, आत्मरूप ही मान ।
राग-द्वेष तजकर भजो, शुचि चैतन्य प्रधान ॥१०॥
अन्वयार्थ : [तम्हा] इसलिए [दंसणणाणं चारित्तं तह तवो य] दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप [सो अप्पा] वह आत्मा ही है । अतएव [रायदोसे] राग और द्वेष को [चइऊण] छोड़कर [सुद्धमप्पाणं] शुद्ध आत्मा की [आराहउ] आराधना करो ॥१०॥