+ आराधक के और भी लक्षण -
संसारसुहविरत्तो वेरग्गं परमउवसमं पत्तो ।
विविहतवतवियदेहो मरणे आराहओ एसो ॥18॥
संसारसुखविरक्तो वैराग्यं परमोपशमं प्राप्तः ।
विविधतपस्तप्तदेहो मरणे आराधक एषः ॥१८॥
जो विरक्त, भव सौख्य से, राग हीन, उपशान्त ।
अनशनादि तप जो करे, साधक वह निर्भ्रान्त ॥१८॥
अन्वयार्थ : जो [संसारसुहविरत्तो] संसार सम्बन्धी सुख से विरक्त है, [वेरग्गं परमउवसमं पत्तो] वैराग्य तथा परम उपशम भाव को प्राप्त है और [विविहतवतवियदेहो] नाना प्रकार के तपों से जिसका शरीर तपा हुआ है [एसो] यह जीव [मरणे] मरणपर्यन्त [आराहओ] आराधक [हवइ] होता है ।