
अप्पसहावे णिरओ वज्जियपरदव्वसंगसुक्खरसो ।
णिम्महियरायदोसो हवइ आराहओ मरणे ॥19॥
आत्मस्वभावो निरतो वर्जितपरद्रव्यसंगसौख्यरसः ।
निर्मथितरागद्वेषो भवत्याराधको मरणे ॥१९॥
रहता आत्म-स्वभाव में, द्रव्य, संग सुख त्याग ।
राग-द्वेष को जीतता, वह साधक बड़भाग ॥१९॥
अन्वयार्थ : जो [अप्पसहावे णिरओ] आत्म-स्वभाव में तत्पर है, [वज्जियपरदव्वसंगसुक्खरसो] जिसने पर-द्रव्य के संसर्ग से होने वाले सुख की अभिलाषा को
छोड़ दिया है और जिसने [णिम्महियरायदोसो] राग-द्वेष को नष्ट कर दिया है, ऐसा पुरुष [मरणे] मरण-पर्यन्त [आराहओ] आराधक [हवइ] होता है ।