श्रियं सकलकल्याणकुमुदाकरचन्द्रमा: ।
देव: श्रीवर्द्धमानाख्य: क्रियाद्भव्याभिनन्दिताम् ॥5॥
अन्वयार्थ : समस्त प्रकार के कल्याणरूपी चंद्रवंशी कमल-समूह को प्रफुल्लित करने के लिये चंद्रमा के समान श्री वर्द्धमान नामा अन्तिम तीर्थकर देव हैं, सो भव्य पुरुषों द्वारा प्रशंसित और इच्छित लक्ष्मी को करो ।
वर्णीजी