श्रुतस्कन्धनभश्चन्द्रं संयमश्रीविशेषकम् ।
इन्द्रभूतिं नमस्यामि योगीन्द्रं ध्यानसिद्धये ॥6॥
अन्वयार्थ : श्रुतस्कन्ध रुपी आकाश में प्रकाश करने के अर्थ चन्द्रमा के समान, संयमरूपी लक्ष्मी को विशेष करनेवाले, योगियों में इन्द्र के समान इन्द्रभूति को ध्यान की सिद्धि के अर्थ नमस्कार करता हूँ ।
वर्णीजी