वर्णीजी
तच्छुतं तच्च विज्ञानं तद्ध्यानं तत्परं तपः ।
अयमात्मा यदासाद्य स्वस्वरूपे लयं व्रजेत् ॥9॥
अन्वयार्थ :
वही शास्त्र का सुनना है, वही चतुराईरूप भेद-विज्ञान है, वही ध्यान वा तप है, जिसको प्राप्त होकर यह आत्मा अपने स्वरूप में लवलीन होता है ।
वर्णीजी