दुरन्तदुरिताक्रान्तं नि:सारमतिवंचकम् ।
जन्म विज्ञाय कः स्वार्थे मुह्यत्यंगी सचेतन: ॥10॥
अन्वयार्थ : दुःखकर है अंत जिसका, दुरित से व्याप्त, ठग , निगोद-वास कराने वाले जन्म को संसार के स्वरूप को जानने वाले ज्ञान-सहित प्राणियों में ऐसा कौन है, जो अपने हितरूप प्रयोजन में मोह को प्राप्त हो ?
वर्णीजी