अविद्याप्रसरोद्भूतग्रहनिग्रहकोविदम् ।
ज्ञानार्णवमिमं वक्ष्ये सतामानन्दमन्दिरम् ॥11॥
अन्वयार्थ : मैं, अविद्या के प्रसार से उत्पन्न हुए आग्रह तथा पिशाच को निग्रह करने में प्रवीण तथा सत्पुरुषों के लिये आनंद का मंदिर, इस ज्ञानार्णव नाम के ग्रंथ को कहूँगा ।
वर्णीजी