अपाकुर्वन्ति यद्वाच: कायवाक्‌चित्तसम्भवम्‌ ।
कलंकमंगिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते ॥15॥
अन्वयार्थ : जिनके वचन जीवों के काय-वचन-मन से उत्पन्न होनेवाले मलों को नष्ट करते हैं, ऐसे देवनन्दी नामक मुनीश्वर (पूज्यपादस्वामी) को हम नमस्कार करते हैं ।

  वर्णीजी