जयन्ति जिनसेनस्य वाचस्त्रैविद्यवन्दिता: ।
योगिभिर्यत्समासाद्य स्खलितं नात्मनिश्चये ॥16॥
अन्वयार्थ : जिनसेन आचार्य महाराज के वचन जयवन्त हैं । क्‍योंकि योगीश्वर उनके वचनों को प्राप्त होकर आत्मा के निश्चय में स्खलित नहीं होते (यथार्थ निश्चय कर लेते हैं) । तथा उनके वचन न्याय, व्याकरण और सिद्धान्त इन तीन विद्याओं के द्वारा वंदनीय हैं ।

  वर्णीजी