श्रीमद्भट्टाकलंकस्य पातु पुण्या सरस्वती ।
अनेकान्तमरुन्मार्गे चन्द्रलेखायितं यया ॥17॥
अन्वयार्थ : अनेकान्त स्याद्वादरूपी आकाश में चन्द्रमा की रेखा-समान आचरण करने वाली, श्रीमत्‌ (शोभायमान निर्दोष) भट्टाकलंक नामा आचार्य की पवित्र वाणी हमको पवित्र करो और हमारी रक्षा करो ।

  वर्णीजी