भवप्रभवदुर्वारक्लेशसन्तापपीडितम्‌ ।
योजयाम्यहमात्मानं पथि योगीन्द्रसेविते ॥18॥
अन्वयार्थ : इस ग्रंथके रचने से संसार में जन्म ग्रहण करने से उत्पन्न हुए दुर्निवार क्लेशों के संताप से पीड़ित मैं अपने आत्मा को योगीश्वरों से सेवित ज्ञान-ध्यानरूपी मार्ग में जोड़ता हूँ ।

  वर्णीजी