अधीतैर्वाश्रुतैर्ज्ञातै: कुशास्त्रे: किं प्रयोजनम्‌ ।
यैर्मन: क्षिप्यते क्षिप्रं दुरन्ते मोहसागरे ॥28॥
अन्वयार्थ : उन शास्त्रों के पढ़ने, सुनने व जानने से क्‍या प्रयोजन (लाभ) है, जिनसे जीवों का चित्त (मन) दुरन्तर तथा दुर्निवार मोह समुद्र में पड़ जाता है ।

  वर्णीजी