क्षणं कर्णामृतं सूते कार्यशुन्यं सतामपि ।
कुशास्त्रं तनुते पश्चादविद्यागरविक्रियाम्‌ ॥29॥
अन्वयार्थ : कुशास्त्र यद्यपि सुनने में क्षणभर के लिए अमृत की-सी वर्षा करता है, परन्तु कालान्तर में वह सत्पुरुषों के कार्य से रहित अविद्यारूपी विष के विकार (विषयों की तृष्णा) को बढ़ाता है ।

  वर्णीजी