अज्ञानजनितश्चित्रं न विद्म: कोऽप्ययं ग्रह: ।
उपदेशशतेनापि य: पुंसामपसर्प्पति ॥30॥
अन्वयार्थ : यह बड़ा आश्चर्य है, जो जीवों का अज्ञान से उत्पन्न हुआ यह आग्रह (हठ) सैकड़ों उपदेश देने पर भी दूर नहीं होता । हम नहीं जानते कि, इसमें क्‍या भेद है ।

  वर्णीजी