वर्णीजी
साक्षाद्वस्तुविचारेषु निकषग्रावसन्निभा: ।
विभजन्ति गुणान्दोषान्धन्या: स्वच्छेन चेतसा ॥33॥
अन्वयार्थ :
वे धन्य पुरुष हैं जो अपने निष्पक्ष-चित्त से वस्तु के विचार में कसौटी के समान हैं और गुण-दोषों को भिन्न-भिन्न जान लेते हैं ।
वर्णीजी