प्रसादयति शीतांशु: पीडयत्यं शुभाञज्जगत् ।
निसर्गजनिता मन्ये गुणदोषा: शरीरिणाम् ॥34॥
अन्वयार्थ : देखो चन्द्रमा जगत को प्रसन्न करता है और ताप को नष्ट करता है । एवं सूर्य पीड़ित करता है, । इसी प्रकार जीवों के गुण-दोष स्वभाव से ही हुआ करते हैं, ऐसा मैं मानता हूँ ।
वर्णीजी