दूषयन्ति दुराचारा निर्दोषामपि भारतीम् ।
विधुबिम्बश्रियं कोका: सुधारसमयीमिव ॥35॥
अन्वयार्थ : जो दुष्ट पुरुष हैं वे निर्दोष-वाणी को भी दूषण लगाते हैं । जैसे सुधारसमयी चन्द्रमा के बिम्ब की शोभा को चक्रवाक दूषण देते हैं कि, चन्द्रमा ही चकवी से हमारा विछोह करा देता है ।
वर्णीजी