
हृषीकराक्षसाक्रान्तं स्मरशार्दूलचर्वितम् ।
दुःखार्णवगतं विश्वं विवेच्य विरतं बुधै: ॥38॥
अन्वयार्थ : जो बुद्धिमान हैं, उन्होंने इस जगत को इन्द्रियरूपी राक्षसों से व्याप्त तथा कामरूपी सिंह से चर्वित और दुःखरूपी समुद्र में डूबा हुआ समझकर छोड़ दिया ।
वर्णीजी