वर्णीजी
जन्मजातङ्कदुर्वारमहाव्यसनपीडितम् ।
जन्तुजातमिदं वीक्ष्य योगिन: प्रशमं गता: ॥39॥
अन्वयार्थ :
संसार से उत्पन्न दुर्निवार आतंक
(दाहरोग)
रूपी महाकष्ट से पीड़ित इस जीव-समूह को देखकर ही योगीजन शान्त-भाव को प्राप्त हो गये ।
वर्णीजी