वर्णीजी
रजस्तमोभिरुद्धूत कषायविषणमूर्च्छितम् ।
विलोक्य सत्त्वसन्तानं सन्त: शान्तिमुपाश्रिता: ॥41॥
अन्वयार्थ :
जो सत्पुरुष हैं, वे रजोगुण व तमोगुण से कम्पायमान तथा कषायरूपी विषय से मूर्छित इस सत्त्वसन्तान
(जगत)
को देखकर शान्तभाव को ग्रहण करते हैं ।
वर्णीजी