अनादिकालसंलग्ना दुस्त्यजा कर्मकालिका ।
सद्यः प्रक्षीयते येन विधेयं तद्धि धीमताम्‌ ॥44॥
अन्वयार्थ : अनादिकाल से लगी हुई कर्मरूपी कालिमा बड़े कष्ट से तजने योग्य है । इस कारण यह कालिमा जिससे शीघ्र ही नष्ट हो जाय, वही उपाय बुद्धिमानों को करना चाहिये ।

  वर्णीजी