
नासादयसि कल्याणं न त्वं तत्त्वं समीक्षसे ।
न वेत्सि जन्मवैचित्र्यं भ्रातर्भूतैर्विंडम्बित: ॥2॥
अन्वयार्थ : हे भाई ! तू भूत से विडम्बनारूप होकर अपने कल्याण में नहीं लगता है और तत्त्वों का विचार नहीं करता है, तथा संसार की विचित्रता को नहीं जानता है; सो यह तेरी बड़ी भूल है ।
वर्णीजी