असद्विद्याविनोदेन मात्मानं मूढ वञ्चय ।
कुरु कृत्यं न किं वेंत्सि विश्ववृत्तं विनश्वरम्‌ ॥3॥
अन्वयार्थ : हे मूढ़ प्राणी ! अनेक असत्‌ कला चतुराई श्रंगार शास्त्रादि असद्विद्याओं के कौतूहलों से अपनी आत्मा को मत ठगो और तेरे करने योग्य जो कुछ हितकार्य हो उसे कर । क्योंकि जगत के ये समस्त प्रवर्तन विनाशीक हैं । क्‍या तू ये बातें नहीं जानता है ?

  वर्णीजी