ताश्च संवेगवैराग्ययमप्रशमसिद्धये ।
आलानिता मनःस्तम्भे मुनिभिर्मोक्तुमिच्छुभि: ॥6॥
अन्वयार्थ : उन भावनाओं को मोक्षाभिलाषी मुनियों ने अपने में संवेग (धर्मानुराग) वैराग्य (संसार से उदासीनता) यम (महाव्रतादि चारित्र) और प्रशम की (कषायों के अभावरूप शान्त भावों की) सिद्धि के लिये अपने चित्तरूपी स्तंभ में ठहराई / बांधी है ।

  वर्णीजी