भवाब्धिप्रभवा: सर्वे सम्बन्धा विपदास्पदम्‌ ।
सम्भवन्ति मनुष्याणां तथान्ते सुष्ठुनीरसा: ॥2॥
अन्वयार्थ : इस संसाररूपी समुद्र में भ्रमण करने से मनुष्यों के जितने संबंध होते हैं, वे सब ही आपदाओं के घर हैं । क्योंकि अन्त में प्रायः सब ही संबंध नीरस (दुःखदायक) हो जाते हैं ।

  वर्णीजी