
वपुर्विद्धि रुजाक्रान्तं जराक्रान्तं च यौवनम् ।
ऐश्वर्य च विनाशान्तं मरणान्तं च जीवितम् ॥10॥
अन्वयार्थ : हे आत्मन् ! शरीर को तू रोगों से घिरा हुआ समझ और यौवन को बुढ़ापे से घिरा हुआ जान तथा ऐश्वर्य सम्पदाओं को विनाशीक और जीवन को मरणान्त जान ।
वर्णीजी