
ये दृष्टिपथमायाता: पदार्था: पुण्यमूर्त्तय: ।
पूर्वाह्ने न च मध्यह्ने ते प्रयान्तीह देहिनाम् ॥11॥
अन्वयार्थ : इस संसार में जिनके यहाँ पुण्य के मूर्तिस्वरूप उत्तमोत्तम पदार्थ प्रभात के समय दृष्टिगोचर होते थे, वे मध्याह्न काल में देखनेमें नहीं आते । तू विचारपूर्वक देख ।
वर्णीजी