
यज्जन्मनि सुखं मूढ ! यच्च दुःखं पुरःस्थितम् ।
तयोर्दुखमनन्तं स्यात्तुलायां कल्प्यमानयो: ॥12॥
अन्वयार्थ : हे मूढ़ प्राणी ! इस संसार में तेरे सम्मुख जो कुछ सुख वा दुःख है, उन दोनों को ज्ञानरूपी तुला में चढ़ाकर तोलेगा, तो सुख से दुःख ही अनन्तगुणा दिख पड़ेगा, क्योंकि यह प्रत्यक्ष अनुभवगोचर है ।
वर्णीजी