वस्तुजातमिदं मूढ प्रतिक्षणविनश्वरम्‌ ।
जानन्नपि न जानासि ग्रह: कोऽयमनौषध: ॥14॥
अन्वयार्थ : हे मूढ़ प्राणी ! यह प्रत्यक्ष अनुभव होता है कि इस संसार में जो वस्तुओं का समूह है सो पर्यायों से क्षण-क्षण में नाश होनेवाला है । इस बात को तू जानकर भी अनजान हो रहा है, यह तेरा क्‍या आग्रह (हठ) है ? क्‍या तुझ पर कोई पिशाच चढ़ गया है, जिसकी औषधि ही नहीं है ?

  वर्णीजी