क्षणिकत्वं वदन्त्यार्या घटीघातेन भूभृताम्‌ ।
क्रियतामात्मन: श्रेयो गतेयं नागमिष्यति ॥15॥
अन्वयार्थ : इस लोक में राजाओं के यहाँ जो घड़ी का घंटा बजता है और शब्द करता है, सो सबके क्षणिकपन को प्रकट करता है; अर्थात्‌ जगत को मानों पुकार कर कहता है कि, हे जगत के जीवों ! जो कुछ अपना कल्याण करना चाहते हो, सो शीघ्र ही कर डालो नहीं तो पछताओगे । क्‍योंकि यह जो घड़ी बीत गई, वह किसी प्रकार भी पुनर्वर लौटकर नहीं आयेगी । इसी प्रकार अगली घड़ी भी जो व्यर्थ ही खो दोगे तो वह भी गई हुई नहीं लौटेगी ।

  वर्णीजी