यद्यपूर्वं शरीरं स्याद्यदि वात्यन्तशाश्वतम्‌ ।
युज्यते हि तदा कर्तुमस्यार्थे कर्म निन्दितम्‌ ॥16॥
अन्वयार्थ : हे प्राणी ! यदि यह शरीर अपूर्व हो, (पूर्व में कभी तूने नहीं पाया हो), अथवा अत्यंत अविनश्वर हो, तब तो इसके अर्थ निंद्य कार्य करना योग्य भी है, परन्तु ऐसा नहीं है । तो फिर ऐसे शरीर के अर्थ निंद्य कार्य करना कदापि उचित नहीं है ।

  वर्णीजी