अवश्यं यान्ति यास्यन्ति पुत्रस्त्रीधनबान्धवा: ।
शरीराणि तदेतेषां कृते किं खिद्यते वृथा ॥17॥
अन्वयार्थ : पुत्र, स्त्री, बांधव, धन, शरीरादि चले जाते हैं और जो हैं, वह भी अवश्य चले जायेंगे । फिर इनके कार्य-साधन के लिये यह जीव वृथा ही क्‍यों खेद करता है ?

  वर्णीजी