वर्णीजी
अङ्गनादिमहापाशैरतिगाढं नियन्त्रिता: ।
पतन्त्यन्धमहाकूपे भवाख्ये भविनोऽध्वगा: ॥21॥
अन्वयार्थ :
इस संसार में निरंतर फिरनेवाले प्राणीरूपी पथिक स्त्री आदि के बड़े-बड़े रस्सों से अतिशय कसे हुए संसार नामक महान्ध-कूप में गिरते हैं ।
वर्णीजी