
अविद्यारागदुर्वारप्रसरान्धीकृतात्मनाम् ।
श्वभ्रादौ देहिनां नूनं सौढव्या सुचिरं व्यथा ॥25॥
अन्वयार्थ : मिथ्याज्ञान-जनित रागों के दुनिर्वार विस्तार से अंधे किये हुए जीवों को अवश्य ही नरकादि में बहुत काल पर्यन्त दुःख सहने पड़ेंगे, जिसका जीवों को चेत ही नहीं है ।
वर्णीजी