वह्निं विशति शीतार्थं जीवितार्थं पिबेद्विषम्‌ ।
विषयेष्वपि यः सौख्यमन्वेषयति मुग्धधी: ॥26॥
अन्वयार्थ : जो मूढ़धी पंचेन्द्रियों के विषय सेवन में सुख ढूंढते हैं, वे मानो शीतलता के लिए अग्नि में प्रवेश करते हैं और दीर्घ जीवन के लिए विषपान करते हैं । उन्हें उस विपरीत बुद्धि से सुख के स्थान में दुःख ही होगा ।

  वर्णीजी 




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